नी रिप्लेसमेंट / घुटना बदलना


नी रिप्लेसमेंट या घुटना बदलना


                           आज कल के जमाने में घुटनों का दर्द और उनसे जुड़ी कइ समस्यों का होना एक आम सी बात हो गइ है। बदलती जीवन शैली और अनियमित खान-पान के चलते एसी समस्या का उभरना स्वाभाविक होता है। भाग दोड़ से भरी जिंदगी के चलते हम घुटनों के दर्द को हमेशा नजर अंदाज करते रहते हैं, इस कारण यह समस्या और भी भीषण हो जाती है। इस समस्या का इलाज आधुनिक विज्ञान के पास नही होता इस कारण वश डॉक्टर हमे घुटनों का ऑपरेशन कर लेने की सलाह देते है इस ऑपरेशन को ही आधुनिक विज्ञान या एलोप्याथि मे नी रिप्लेसमेंट सर्जरी कहते हैं।






घुटनों का ऑपरेशन क्या होता है ?
                            डॉक्टर और विशेषज्ञों के अनुसा आज यह एक बहुत ही आम सर्जरी है जिसे न केवल बुजुर्ग बल्कि वे लोग भी करवा रहे है जीन की उम्र 40 साल से कम है या कोइ कीसी दुर्घटना की वजह से घुटने की कोई समस्या से जूझ रहा हो। इस ऑपरेशन मे दो घुटनो के जोडों के सीरो और बीच के भाग को नीकाल कर कृत्रीम भाग को लगाया जाता है। जो मुख्य रूप से मिश्र धातु, उच्च ग्रेड प्लास्टिक और पॉलिमर से बना होता है। इस वजह से बार बार जोडो मे होने वाला दर्द, सुजन नही होती और अन्य गतिविधियों को करने मे मदत मीलती है।


घुटनों का ऑपरेशन कराने की सलाह कब दी जाती है ?
                         आम तोर पर डॉक्टर हर किसी को इस ऑपरेशन को करने की सलाह नही देते यह ऑपरेशन सीर्फ उन लोगों को करने की सलाह देते है जीन्हें क्रोनीक अर्थराइटिस, पेन कीलर का हाय डोज लेने पर भी घुटनों में अधिक दर्द होना, बार बार घुटनों में सूजन होना, दो घुटनो के बीच की परत का कम होकर जो़डो का घिस जाना, बडी चोट के कारण घुटनों को बडे पेमाने पर क्षिती पहुँचना, चलने या बैठने में तकलीफ का होना इन कारणो की वजह से डॉक्टर ऑपरेशन कराने की सलाह दे सकते है।


घुटनों के ऑपरेशन के प्रकार कितने होते है ?
                           आधुनिक विज्ञान मे नी रिप्लेसमेंट के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते है। अलग अलग रोगीयों के हिसाब से इनमे सें एक ऑपरेशन की सलाह दि जाती है।

टोटल नी रिप्लेसमेंट   ः -  यह नी रिप्लेसमेंट का सामान्य प्रकार है, जिसमें दोनों घुटनों या फिर एक पूरे घुटने का इलाज किया जाता है। इसमे दो घुटनों के जोडों के सीरो और बीच के भाग को नीकाल कर कृत्रीम भाग को लगाया जाता है।


पार्शियल नी रिप्लेसमेंट   ः -  जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस प्रक्रिया मे घुटनों के एक हिस्से का इलाज किया जाता है। इसमें मरीज का पूरा घुटना नहीं बदला जाता बल्कि जिस जगह तकलीफ है बस उतना हिस्सा ही बदल कर सही कर दिया जाता है।


रिविज़न नी रिप्लेसमेंट   ः -  जब एक घुटने का ऑपरेशन होता है तो वो सीर्फ जादा से जादा 20 सालो के लीये स्थाइ तोर पर टिक पाता है उसे कुछ समय के बाद फिर से ऑपरेशन किया जाता है, तो उस स्थिति को रिविज़न नी रिप्लेसमेंट के नाम से जाना जाता है।


 घुटना प्रत्यारोपण से केसे बचा जाए ?
                                वैसे देखा जाए तो आधुनिक विज्ञान के पास अर्थराइटिस और जोड़ो के रोगो का कोइ स्थाइ उपचार मोजुद नही है। बस पेन कीलर और सुजन कम होने की कुछ दावइया देकर प्रयास कीया जाता है और दर्द बढने पर नी रिप्लेसमेंट सर्जरी की सलाह दे देते है। कुछ डॉक्टर तो चंद पैसो के लीये गैर जरूरी सर्जरी के लीए भी मासुम लोगो को डराकर प्रेरीत कर देते है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत में घुटना प्रत्यारोपण की 30-40% सर्जरी गैर जरूरी होती है। एसी  सर्जरी के मामले भारत देश मे तेजी से बढ़ रहे है। इसमें संदेह नहीं कि जादा उम्र के लोग और जीन लोगो को सरर्जरी की सचमें जरूरत है उन लोगो के लीए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी एक वरदान से कम नही है। पर इसमे उन लोगो को बचने की जरूरत है जीन्हे व्यावसायिक हितों के कारण घुटना प्रत्यारोपण करने के लीये भावनीक तोर पर घसीटा जाता है। इसी लीए खुद जागरूक रहना जरूरी है सीर्फ डॉक्टर पर कतई विश्वास न करे और अलग-अलग विशेषज्ञों और चिकित्सक की सलाह भी लें।
                                 कुछ लोगो को आसान सर्जरी, दर्द से निजात व कृत्रिम घुटनों की 20 से 25 वर्ष की गारंटी एसे प्रलोभन देकर घुटना प्रत्यारोपण की ओर आकर्षित किया जाता हैं, पर वास्तविक स्थिति पूरी तरह ऐसी नहीं है। एक बात समझ लें की यह एक कृत्रिम अंग है, जो प्राकृतिक अंग की बराबरी नहीं कर सकता। इसका सहारा तभी उचित है, जब दर्द इतना अधिक हो कि सामान्य कार्यों को करने में भी परेशानी होने लगे व उपचार के अन्य सभी तरीके बे असर साबित हो रहे हो। कृत्रिम घुटनों की उम्र 10 से 20 वर्ष रहती है। वह भी उनके लिए ,जो सर्जरी के बाद वजन को नियंत्रित रखने के साथ खान-पान व व्यायाम पर ध्यान देते हैं। ऐसा नहीं करने पर 2 से 3 साल बाद मरीजों में दर्द की समस्या फिर से शुरू हो जाती है। कम उम्र में कृत्रिम घुटना लगवाने का मतलब है, कुछ वर्षों बाद फिर से प्रत्यारोपण की समस्या होना, जो कई बार बहुत आसान नहीं होती।


आयुर्वेदिक उपचार पद्धती से उपचार ः-
                                    आज से हजारो साल पुराने आयुर्वेदिक शास्त्रों में अर्थराइटिस और जोड़ो के रोगो का इलाज और खान पान तथा परहेजों के बारे में विस्तार से बताया गया है। अगर हम इसका उपयोग हमारी निजी जिंदगी में करे तो नी रिप्लेसमेंट सर्जरी करने की नोबत ही नही आएगी।
                                     अमतोर पर देखा जाये तो घुटनों के दर्द की मुख्य वजह वात रोग होता है। जब शरीर में बीगडे वात को ठीक कर लीया जए तो घुटनों के दर्द खुदब खुद ठीक हो जाएगा।


देसी घि ः- देसी गाय का घि रोज सुबह और शाम एक कप मंद उष्न जल के साथ सेवन करने से घुटनों के दर्द में आराम आता है। अगर वात रोग जादा बढ़ गया हो तो एक चम्मच गीलोय के बेल का चुर्ण और गाय के दो चम्मच देसी घी को एक कप  मंद उष्न जल के साथ मिलाकर सेवन करने से जल्द आराम आ जाता है। देसी घि से हड़ीयों के बीच के पड़दे की परत बढने मे मदत मीलती है।


एरंडी का तेल ः- एरंडी के तेल मे वात नाशक गुण पाए जाते है। इसी लीए दर्द मे हमेशा इसी से मालिश करना लाभदायक होता है। अगर दर्द जादा हो और तेल मालीश से राहत ना मीलती हो तो तेल को तीखा करके भी इस्तमाल किया जा सकता है इस के लिए 500 ग्राम एरंडी के तेल मे 10 मी.ली. तारपीन, लोग और काली मीर्च का तेल और एक तोला भीम सेन कपुर मिलाकर काच के शीशी मे भर कर 7 दिन के लीए धुप मे रख दे बस तेल तयार, इस तेल की मालिश से जल्द राहत मीलती है।


हरसिंगार ः-  वात या गठीया रोग जादा बढ़ जाने से खुन मे युरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है जो हडीयों के सीरो पर जमा होने लगता है इसे कम करने के लीए हरसिंगार के पत्तीयों का काढ़ा बना कर 50 मी.ली. तक एक कप मंद उष्न जल के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से हडीयों के सीरो पर जमा होने वाला युरिक एसिड कम होने लगता है।


पुनर्नवारिष्ट ः- अगर खुन मे युरिक एसिड की मात्रा बढ़ गइ है तो इसका मुल कारण आम तोर पर कीडनी, लीवर और तील्ली की सुजन होता है इस लिए पुनर्नवारिष्ट रोज सुबह-शाम 50 मी.ली. तक एक कप मंद उष्न जल के साथ मिलाकर सेवन करने से कीडनी, लीवर और तील्ली की सुजन कम होकर मुत्र मार्ग से युरिक एसिड बाहर निकल जाता है और खुन मे बढी युरिक एसिड की मात्रा कम होती है।


त्रिफला चुर्ण  ः- शरीर मे वात, पीत्त और कफ को नीयंत्रन मे रखने के लीये त्रिफला चुर्ण का प्रयोग होता है यह कोठा शुद्ध कर के वात, पीत्त और कफ को नीयंत्रन मे रख ता है इस लीए तीन दिन के अंतराल से सुबह खली पेट दो चम्मच पानी के साथ सेवन करना बेहत जरूरी है।


नोट ः- इन सभी दवाइयों को सेवन करते वक्त एक बात ध्यान मे रखे, एक से दुसरी दवा सेवन करने के बीच मे 20 मीनट का अंतर रखना जरूरी है।


खान पान और परहेज ः-
                     अगर आप इन दावाइयों का सेवन कर रहे है तो सही परीनाम पाने के लीये आप को खान पान और परहेज पर वीशेष ध्यान देना जरूरी है।
                     भोजन मे एक वर्ष पुराने चावल, जंगली पशु-पक्षियों का मांस का सूप, एरंड़ी का तेल, पुरानी देसी शराब जो नैसागर विरहीत हो, लहसुन, करेला, परवल, बैंगन, सहजन, लस्सी, ताक, ताजा गोमुत्र, गर्म पानी, अद्रक, कड़वे एवम भूक बढाने वाले पदार्थो का सेवन इस रोग मे लाभकारी होता है। इस रोग मे फलाहार करना, नंगे पेर घास पर घुमना, सोते समय हल्दी मीले गरम दुध का सेवन लाभकारी माना गया है।
                        इस वात रोग मे उड़द से बनी कचौड़ी तथा बड़ी मछली, दूध, दही, पनीर, मसालेदार पदार्थ, बेक कीये गये पदार्थ, पॅकिंग प्रोडक्ट, देर रात तक जागना, मल-मुत्र के वेग को रोकना बहोत जादा हानिकरक है। मूली, केला, अमरूद, नए चावल, कटहल का प्रयोग भी इस रोग के लीए हानिकारक कहा गया है।


नोट ः-  उपर दि गइ दवइयों का सेवन करने से पहले विशेषज्ञों की राय जरूर ले क्योंकी रोगी की वर्तमान परीस्थिती के अनुसार दवाइयों का प्रमान कम या जादा हो सकता है।



Post a Comment

0 Comments