पंवाड़-चक्रमर्द-टाकला


परिचयः-
               पंवाड़ मुख्य रूप से बरसात में पहेली बारीश होने के बाद ही उगना प्रारंभ होने वाला पौधा है। यह पौधा गंध युक्त होता है। इसके पत्तो को हातो से मसल ने पर एक विशेष प्रकार की गंध आती है। ये अकसर सड़कों के किनारे और खाली पड़े स्थानों में ऊगा हुआ मिलजाता है। इसमें पीले रंग के फूल आते है और लम्बी-लम्बी फलियां लगती है। गरमीयो मे पौधा सूख जाने पर फलियां चटक जाती है और उनके बीज बिखर जाते है। जीस तरहा मेथी की सब्जी बनाई जाती है उसी तरह चक्रमर्द के कोमल पत्तों की भी सब्जी बनाई जाती है।

विभिन्न भाषाओं में पंवाड़ के नाम ः-

  हिंदी                    पंवाड़, पवॉड़, पमार, चकौड़ा, चकवड़ ।
  मराठी                 तरोटा, टाकला ।
  लैटिन                 केसिया टोरा ।
  गुजराती             पुंवाड़ियों, कुंवाड़ियों ।
  संस्कृत               चक्रमर्द, दर्दघ्न, मेषलोचन प्रपुत्राड़, चक्री, पुन्नाटा ।

                 पंवाड़ का स्वाद मीठा और रूक्ष होता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। इसका बीज खाने में गर्म तथा चरपरा होता है। इसके पत्ते दो ग्रंथियुक्त, संयुक्त और तीन जोड़ों मे होते है। इसके फुल आधा इंच व्यास के मटमैले पीले रंग के होते है। सर्दी के मौसम मे इसकी फली सुख जाती है और इसमे भूरे रंग के लंबे और गोल बीज होते है जिनके किनारे तिरछे कटे से होते है। पंवाड़ की तुलना बावची से की जा सकती है।
                  पंवाड़ के गुणो की बात करे तो इसके बीज आकार मे छोटे, कड़वे, गर्म, यकृत उत्तेजक, कफ नाशक, उत्तेजक, पाचक, बलवर्ध्दक होते है। इन बीजों को आयुर्वद चिकीत्सा मे एक औषधि के रूप मे इस्तमाल किये जाते है जैसे की पेट के की़डे, त्वचा विकार, विशरक्त, मोटापा, पक्षाघात, वातविकार, कब्ज, पेट की गांठे, बवासीर, रक्तदोश, आदि रोगों में उपयोग किया जाता है।

विभिन्न रोगों में प्रयोग विधि ः-

  • प्रमेह   ः-  पंवाड़ के फूल 100 ग्राम और मिश्री 10 ग्राम को मिलाकर खरल मे खरल कर रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से प्रमेह समाप्त हो जाता है।
  • खांसी ः- पंवाड़ के बीजों का चुर्ण तीन ग्राम जल के साथ सेवन करणे से खांसी आराम मिलता है।
  • मधुमेह ः-  पंवाड़ के जडों को कूट पीस कर अष्ठमांश काढा तयार कर सेवन करने से मधुमेह मे लाभ होता है।
  • पेशाब का अधिक आना ः- दो चम्मच पंवाड़ की जड के चुर्ण को चावल धुले हुये जल मे मिलाकर सेवन करने से श्वेतप्रदर और पेशाब का अधिक आना यह रोग ठीक हो जाते है।
  • शीतपित्त ः- 3 ग्राम पंवाड़ के जडों के चुर्ण को देसी घी मे मिलाकर खाने से शीतपित्त मिटजाता है।
  • दाद ः-  पंवाड़ के पंचांग छाव मे सुखाकर कुट पीस कर छान ले इसमे से 200 ग्राम चुर्ण 400 ग्राम मक्खन वाली दही मे मिलाकर चार दिनो के लीये मिट्टी के बर्तन में रख दे मलहम तयार हो जाएगा इस मलहम को दाद वाली जगह पर मले और एक घंटे बाद धो दे इसके रोजाना प्रयोग करने से कुछ ही दिनों मे दाद समाप्त हो जाता है।
  • त्वचा रोग ः- पंवाड़ के कोमल पत्तो की सब्जि का सेवन करने से त्वचा रोग मे लाभ होता है। इसके पत्तो को पीसकर जरासी हल्दी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।
हानिकारक ः- पंवाड़ का अधिक मात्रा मे सेवन आंतों के लिए हानिकारक होता है। इसके दोषों को दूर करने के लीये दही, दूध या गुलाब जल को मिलाकर सेवन करने से दोषों से मुक्ति मिलजाती है।



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