हुरहुर



परिचय ः -
                  भारत एक जड़ी बूटियों का देश है। यहा जड़ी बूटियों से चिकीत्सा की जाताी है बस सही पहचान करने की जरूरत होती है। बारीश के मोसम मे बहोत से जड़ी बूटियों के पैधे उग अते है। एसी ही एक जड़ी बूटि है जिसका नाम है हुरहुर। यह पैधा समस्त भारत में खेतो और परती भूमि में खरपतवार के रूप में उग अता है। इसमे दो प्रजातीया पाई जाती है जो उनके पुष्प भेद के आधार पर नुर्धारित की जाती है। एक है श्वेत पुष्पी हुरहुर और दुसरी है पीत ( पिले रंग की ) पुष्पी हुरहुर।






1- हुरहुर श्वेत ः -  यह पैधा तीस से नब्बे सेमी ऊँचा होता है। इसकी शाखाओं पर ग्रंन्थिले रोम होते है। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते है। इसकी फलियाँ 5-10 सेमी लम्बी, 4.5 मिमी व्यास की चिपचिपी तथा उन पे हलके रोम होते हैं। इसके बीज गहरे भूरे से कृष्ण वर्ण के तथा खुरदरे, वृक्काकार होते हैं।






2- हुरहुर पीत   ः -   यह पैधा तीस से नब्बे सेमी तक ऊँचा होता है। यह दृढ़, तीक्ष्ण एवं पूतिगंधयुक्त होता है। यह सीधा, चिपचिपा शाकीय पौधा होता है। इसके पुष्प पीत( पिले ) वर्ण के होते हैं। इसकी भी फलियाँ 5-10 सेमी लम्बी, 4.5 मिमी व्यास की चिपचिपी तथा उन पे हलके रोम होती हैं। इसके बीज गहरे भूरे से कृष्ण वर्ण के तथा खुरदरे, वृक्काकार होते हैं।

गुण  ः - 

     1)  पीली हुरहुर   ः -
                 यह स्वाद मे कटु, तिक्त होता है। स्वभाव मे कषाय, उष्ण, रूक्ष, लघु, कफ, वातशमक, ग्राही, रुचिकारक, तीक्ष्ण, विद्राही तथा स्वेदल होती है। यह श्वास, कास, अरुचि, ज्वर, विस्फोट, कुष्ठ, प्रमेह, योनिरोग, मूत्रकृच्छ्र, शोथ, कृमि, शूल, रक्तपित्त, कृमिरोग तथा पाण्डु रोग नाशक होती है। इसके बीज उष्ण वीर्य, जठराग्निदीपक, गुल्म, अनाह, आमदोष, शूल, कफहारक तथा वात-ज्वर शमक होती है।


     2)  हुरहुर श्वेत ः -
                 श्वेत हुरहुर स्वाद मे मधुर, कटु, तिक्त होती है। इसका स्वभाव कषाय, शीत, रूक्ष, गुरु, कफ-वात शमक, ग्राही, पित्तकारक,  मूत्रजनक, अग्निदीपक, स्वर्य तथा रसायन होती है। यह व्रण, शीतज्वर, प्रमेह, कृमि, कुष्ठ, त्वचा विकार, विष्टम्भ, रुधिरा विकार, ज्वर, श्वास, कास, योनिशूल, मूत्रकृच्छ्र, पाण्डु, गुल्म तथा विस्फोट शमक होती है। इसका उपयोग भूतबाधा और ग्रहपीड़ा को शांत करने के लीए भी कीया जाता है।

विभिन्न भाषाओं में नाम   ः-

          हिंदी                           हुरहुर
          मराठी                        तिलवन, कानफोड़ी
          अंग्रेजी                       मस्टर्ड

विभिन्न औषधियों से उपचार   ः -

  • मस्तिष्कावरण शोध   ः -  हुरहुर के पत्र या फूलों को पीसकर मस्तक पर लेप लगाने से मस्तिष्कावरण शोथ का शमन होता है। 
  • कर्णस्राव   ः -  हुरहुर पत्र के स्वरस में मधु, तिल का तैल तथा सेंधा लवण मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णशूल, कर्णशोथ तथा मध्य कर्णगत विकारों में लाभ होता है।
  • कर्ण विकार   ः -  हुरहुर के कोमल पत्रो के स्वरस में तुलसी के पत्रो का स्वरस मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णविकारों में विशेष लाभ होता है।
  • अतिसार   ः -   15-20 मिली हुरहुर के पंचांग के क्वाथ को पानी के साथ सेवन करते रेहने से आंत्रविकार तथा अतिसार जैसे रोगो में लाभ होता है। पौधे के पंचांग का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से उदरशूल, अजीर्ण, अग्निमांद्य तथा गुल्म विकारो में लाभ होता है।
  • अर्श   ः -   1-2 ग्राम हुरहुर के बीजो के चूर्ण का सेवन पानी के साथ करने से अर्श रोग में लाभ होता है।हुरहुर के बीजो का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से यकृत्प्लीहागत विकारों में लाभ होता है।
  • संधिशूल   ः -  हुरहुर के बीजो को पीसकर संधियों पर लेप करने से संधिशूल का शमन होता है।
  • व्रण   ः -  हुरहुर के पत्र को पीसकर पुलटीश बनाकर व्रण वाले स्थान पर लगाने से व्रण तथा क्षत का रोपण होता है।
  • त्वक् विकार   ः -  हुरहुर के पत्र को पीसकर लेप करने से शोथ, व्रण, कण्डू, कुष्ठ तथा अन्य त्वक्-विकारों का शमन होता है।
  • ज्वर   ः -  5 मिली हुरहुर पत्र के स्वरस में जल मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।
  • आधासीसी   ः -  श्वेत हुरहुर पत्र स्वरस का नस्य लेने से आधसीसी में लाभ होता है।
  • नेत्र पीड़ा   ः -   श्वेत हुलहुल के पत्रों की पुल्टिस बनाकर नेत्रों पर बांधने से नेत्रवेदना, शोथ तथा लालिमा का शमन होता है।
  • प्रतिश्याय   ः -  श्वेत हुरहुर पत्रो के स्वरस को 1-2 बूंद नाक में डालने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।
  • कृमिकर्ण   ः -  श्वेत हुरहुर मूल के स्वरस में सोंठ, काली मरिच तथा पिप्पली मिलाकर छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कृमि कर्ण रोग का शमन होता है।
  • गलगण्ड   ः -  श्वेत हुरहुर और लहसुन को समान मात्रा में मिलाकर पीसकर गलगण्ड पर लेप करने से स्राव होकर गलगण्ड का शमन हो जाता है।
  • प्रवाहिका   ः -  श्वेत हुरहुर का क्वाथ बनाकर 15-20 मिली मात्रा में सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।
  • उदरकृमि   ः -  1-4 ग्राम श्वेत हुरहुर के बीजो के चूर्ण में समभाग शर्करा मिलाकर सेवन करने से उदरकृमियों का शमन होता है।
  • उदरशूल   ः -  1-2 बूंद श्वेत हुरहुर के बीजों के तैल को बतासे में डालकर खाने से उदरशूल का शमन होता है।
  • बहुमूत्रता   ः -  1-2 ग्राम श्वेत हुरहुर के बीजो में समभाग गुड़ तथा अजवायन मिलाकर सेवन करने से बहुमूत्रता में लाभ होता है।
  • विषम-ज्वर   ः -  10-20 मिली श्वेत हुरहुर के पत्रो के क्वाथ को पिलाने से विषम-ज्वर का शमन होता है।


सावधानी  ः -  हुरहुर के पत्तो को पीस कर लेप लगाने पर दो घंटे बाद हटा देना चाहिए अगर जादा देर तक लेप लगा रहे तो उस स्थान पर चेचक के दाने निकल आते है।

मीत्रा  ः -  क्वाथ की मात्रा 10 से 20 मिली, स्वरस 5 से 10 मिली, चर्ण 1 से 2 ग्राम । रोगी की प्रकृति देख कर मात्रा कम जादा हो सकती है इस लिए चिकित्सक से परामर्श जरूर ले।


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