सिंघाड़ा





परिचय ः-
                  सिंघाड़ा मीठे पानी के तालाबों में उगने वाली एक लता में पैदा होने वाला, एक बैल के मुख के समान दिखाई देने वाला त्रिकोने आकार का एक फल है। बैल की तरह इसके सिर पर भी सींगो की तरह दो काँटे होते है। इसकी बेल लंम्बी होती है। इसके पत्ते तीन अंगुल चोडे और कटावदार उपर से हरे और नीचे से गुलाबी रंग के होते है। फूल सफेद और फल काले व हलके लालीमा लिए होते है। इन फलो के छिलके मजबूत और कठोर होते है, गूदा सफेद रंग का होता है और इनमें आयोडीन भी अधीक मात्रा मे पाया जाता है। दूध की अपेक्षा सिंघाड़े में बाइस प्रतिशत खनिज और क्षार अधिक पाए जाते है। सिंघाड़े पौष्टिक और शरीर को शक्ति प्रदान करने वाले होते है।  सिंघाड़ा भारतवर्ष के प्रतेक प्रतेक प्रांत, शहर, गाव और कसबो मे, मीठे पानी के तालाबो और जलाशयों में लगाया जाता है। इसके सूखे फलों की गिरी का आटा बनाकर व्रत के दिनो मे सेवन कीया जाता है।






आयुर्वेदा अनुसार गुण ः-
                    सिंघाड़ा मीठा, ठंडा, कसेला व भारी होता है। यह खून की खराबी और पित्त दोष को दूर करता है, यह मल को साफ करता है, वीर्य को बढाता है, यह गर्भ को पुष्ट करने की शक्ति रखता है।
                    सिंघाड़े का रस ठंड़ा, कसेला, भारी, वीर्य वर्धक, पोष्टिक तथा पाचक होता है। सिंघाड़े की बेल का रस आंखों के रोगों को दूर करता है, जलन मिटाकर वात, पित्त, कफ, रक्तपित्त, बुखार को दूर करता है।

आधुनिक विज्ञानिकों के अनुसार ः-
                   सिंघाड़े के फल में चर्बी 5 प्रतिशत, प्रोटीन 3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 4 प्रतिशत और क्षार 7 प्रतिशत होता है। इसमे चूना, फॉस्फोरस ,लोह, खनिज तत्व, विटामिन ए, स्टार्च और मैंग्नीज ज्यादा मात्रा में होता है। इसके आयुर्वेदिक गुणो के कारण ही अनेक रोगो में इसकी उपाय योजना की जाती है।


विभिन्न रोगों मे उपचार ः-

  • गले की गांठ ः-  सिंघाड़े में आयोडीन की मात्रा जादा होने की वजह से घोंघा ( गलगंड - मराठी), तालुमूल प्रदाह, तुतलाहट जैसे रोगो में सेवन करने से विशेष लाभ होता है।
  • कुष्ठरोग ः-  कुष्टरोग और त्वचा रोग खून की खराबी और शरीर में जीवन तत्वों की कमी के करण होता है। इसलिए सिंघाड़ा, काकड़सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड को समभाग लेकर कुट-पीस कर, चूर्ण बनाकर, चार ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से कुष्ट रोग ठीक हो जाता है।
  • वीर्य की कमी ः- सिंगाड़े का आटा,बबूल की गोंद, देसी घी समभाग लेकर चुर्ण बनाले इसमे से 5 चम्मच चुर्ण गोद्धु के साथ मिलाले स्वादानुसार मिश्री मिलाकर रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से धातू की कमी दूर होकर वीर्य की रूद्धि होती है।
  • टांसिल का बढ़ना ः- गले में टांसिल होने पर सिंघाड़े या इसके पत्तों के काढ़े से गरारे करने से सूजन ठीक हो जाती है।
  • बार बार गर्भपात   ः- गर्भधारण करने के बाद स्त्रि को कष्टप्रद रक्तस्राव होकर गर्भ गीरने का डर हो तो सिंघाड़े की लापसी बनाकर दिन में 2-3 बार दूध के साथ सेवन करने से रक्तस्राव बंद होता है और गर्भपात नहीं होता।
  • प्रदर रोग ः- सिंघाड़े के आटे से बना हलवा खाने से श्वेत प्रदर ठीक होता है और रोटी बनाकर खाने से रक्तप्रदर ठीक होता है। सिंघाड़े का चुर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ  प्रतिदिन सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर ठीक हो जाते है।
  • मूत्रकृच्छ ः- 10 ग्राम सिंघाड़े का चुर्ण लेकर 200 मिलीलीटर पानी मिलाकर हलकी आच पर पकाये एक चौथाइ शेष रेहने पर छान कर सुबह-शाम पीये इससे मूत्रकृच्छ ठीक हो जाता है।

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