टिटनस ( धनुर्वात )

टिटनस ( धनुर्वात ) यह एक संक्रामक रोग है। यह रोग अस्थियों की पेशीयों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका-कोशिकाएँ प्रभावित करता है। अस्थिपेशियों के तंतुओं के लम्बे समय तक खिंचे रह जाने से यह अवस्था प्रकट होती है। यह रोग मिट्टी या जंग लगी धातु में रहनेवाले विशानु से घावों के प्रदूषित होने के कारण होती है। यह विशानु दीमक के समान मिट्टी में लंबी अवधि तक छेद बना कर जीवीत रह सकते है। जब कोई इन विशानुवोसे प्रदूषित होता है, तो टेटनस बीमारी पैदा होती है। जब ये विशानु सक्रिय होकर तेजी से बढ़ने लगते हैं और मांसपेशियों को प्रभावित करनेवाला जहर पैदा करने लगते है, तो टेटनस का संक्रमण फैलता है।




                टेटनस के विशानु पूरे वातावरण में, आमतौर पर मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाये जाते है। हमारे शरीर में विशानु के प्रवेश का रास्ता आमतौर पर कटे-फटे हुए घाव होते है, जो जंग लगी कीलों, धातु के टुकड़ों या कीड़ों के काटने, जलने या त्वचा के फटने से बनता है।

टिटनस को चार भागो मे विभाजीत कीया गया है।

सामान्य टेटनस मे शरीर की संरचना सभी मांसपेशियों को प्रभावित कर सकती है। यह सबसे सामान्य और सभी चार प्रकार में सबसे गंभीर हो सकती है।

स्थानीय टेटनस बैक्टीरिया से संक्रमित घाव के आसपास की मांसपेशियों को प्रभावित करता है, इससे मांसपेशियों में खिंचाव, खुजली,सूजन जेसे लक्षण पैदा होते है।

सिफेलिक टेटनस में  एक से दो दिन में चेहरे की मांसपेशियां तेजी से प्रभावित होती है। यह आमतौर पर सिर पर चोट या कान में संक्रमण के कारण सिफेलिक टेटनस होता है,

नीयोनेटल टेटनस सामान्य टेटनस जैसा ही होता है, लेकिन यह एक माह से कम उम्र के शिशुओं को प्रभावित करता है।

टेटनस मे निम्न लक्षण प्रदर्शित होते है।

मांसपेशियों में खिंचाव, खुजली,सूजन,शरीर मे कमजोरी जैसे लक्षण पाये जाते है।
इस राेग मे सबसे पहले चेहरे की मांसपेशिया प्रभावित होती है।
जबड़ों की जकड़न चबाने के लिए जरूरी मांसपेशियों में होने वाले संक्रमन के कारण हैती है।
इसके बाद पीठ की मांसपेशियों में दर्द या मांसपेशियों की जकड़न इतनी भयानक हो सकती है कि इससे हड्डियां टूट सकती हैं और जोड़ हिल सकते है। सांस लेने की नली में जकड़न होती है।
सीफैलिक टेटनस में जबड़े के जकड़ने के अलावा चेहरे की मांसपेशियों में कमजोरी होती है।
नीयोनेटल टेटनस नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है। इससे शिशु बेचैन हो जाते हैं और उन्हें चूसने और निगलने में कठिनाई होती है।

             इससे से पूरी तरह बचाव संभव है। 1920 के दशक में शुरू किया गया टेटनस टॉक्सॉयड टिका करन प्रोग्राम सबसे सुरक्षित साबित हुआ है। टेटनस टॉक्सॉयड में निष्क्रिय टेटनस टॉक्सीन को रसायनों और ताप के प्रभाव में लाकर उसके जहरीले प्रभाव को कम किया जाता है, लेकिन इसके एंटीजिनिक प्रभाव को बरकरार रखा जाता है, टेटनस टॉक्सॉयड किसी भी अस्पताल मे  टीके के रूप में आसानी से उपलब्ध है। इसे शिशुओं के आरंभिक टीकाकरण के लिए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड और पर्टूसिस वैक्सीन (डीटीपी) और बड़ों तथा बच्चों के टीकाकरण के लिए कम किये हुए डिप्थेरिया टॉक्सॉयड (टीडी) के साथ मिलाया जा सकता है। वयस्कों के आरंभिक टीकाकरण के लिए छह सप्ताह के अंतराल पर टेटनस टॉक्सॉयड की दो खुराक दी जाती है, जबकि छह से 12 महीने बाद तीसरी खुराक। हर दस साल मे बूस्टर खुराक की सिफारिश की जाती है, ताकि शरीर में जहर रोधी स्तर बना रहे, पच्चास या उससे अधिक उम्र के वयस्कों में टीकाकरण की सिफारिश की जाती है, क्योंकि हाल के दिनों में इस आयुवर्ग में टेटनस के कई मामले सामने आये हैं। इन लोगों में टेटनस की आशंका अधिक होती है।




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