अपस्मार





परिचय ः-
                   अती चिंन्ता, अती शोक, क्रोधादि, मन को उद्धिग्न करने वाले कारणों से प्रकुपित हुए दोष ह्रद्य-स्त्रोत अर्थात मनोवाहि स्रोतों में स्थिर होकर स्मरणशक्ति का नाश करके अपस्मार या मिर्गी नामक रोग को उत्पन्न कर देते है।अपस्मार की पूर्व रूपावस्था में ह्रद्य मे अनियमितता से प्रकंट हुआ करता है और शून्यता सी बनी रहती है। रोगी को बार-बार पसीना आता रहता है, मन और इन्द्रिया मूर्च्छितीवस्था में रहती है। इसके अतिरीक्त निद्रानाश भी होजाया करता है।

अपस्मार का कारण ः-
                    जो व्यक्ती अहितकर और अपवित्र भोजन करते है और उनके शरीर में प्रारंम्भ से ही दोष उन्मार्गी तथ अधिक मात्रा मे उपस्थित रहते है एसे व्यक्तियों के शरीर में जब सत्वगुण, रज और तमगुण के बढ़ जाने से रोगी का शरीर अधिक दुर्बल हो जाता है। उसका ह्रदय वातादि दोषो से आवृत हो जाता है तथा चिंन्ता, काम, भय, क्रोध, शोक और उव्देग आदि के कारणो से मन दोषों से विशेष रूप से दूषित हो जाता है इसी कारण वश अपस्मार रोग की उत्पत्ति हो जाती है। ( चरक संहिता )
                   इस रोग में रोगी को बेहोशी आ जाती है, मुंह से झाग निकलता है, हाथ-पैर और पूरा शरीर कांपने लगता है, शरीर में कड़ापन आ जाता है, दिमाग में असंतुलनता आ जाती है। मिर्गी के दौरे पड़ने पर रोगी अपनी स्मरण शक्ति थोड़ी देर के लिए खो देता है और उसे किसी भी बात का ज्ञान नहीं रहता है। अयुर्वेद में वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज इस तरह अपस्मार के चार भेद कहे गये है ।

वातज अपस्मार के लक्षण   ः-  शरीर कापत है, दांतो को कटकटा ता है, मुंह से झाग निकलता है, श्वास की गती तीव्र हो जाती है और वह चारो और काले रंग के वर्ण को देखता है और बेहोश हो जाता है।

पित्तज अपस्मार के लक्षण ः- पित्तजन्य अपस्मार में रोगी के मुख से पीले रंग का झाग नीकलता है, उसका शरीर ,नेत्र और मुख पीले पड जाते है, उसे प्यास अधिक लगती है, शरीर गरम रहता है,  और वह चारो ओर लाल रंग के वर्ण को देखता है और बेहोश हो जाता है।

कफज अपस्मार के लक्षण ः-  कफज अपस्मार  में रोगी के मुख से सफेद रंग का झाग नीकलता है, उसका शरीर ,नेत्र और मुख सफेद पड जाते है, उसका शरीर शीतल और भारी हो जाता है, और वह चारो ओर श्वेत रंग के वर्ण को देखता है और बेहोश हो जाता है।

 सन्निपातज अपस्मार के लक्षण ः-  वातज, पित्तज, कफज इन तीनो के मिक्षित लक्षण एक साथ रोगी मे नजर आते है । यह सन्निपातज अपस्मार असाध्य होता है तथा जो अपस्मार क्षिण व्यक्ति को हुवा हो, और जो बहुत दिनों का हो गया हो वह अपस्मार यदि एक दोष से हुवा हो तोभी वह असाध्य होता है।


विभिन्न भाषाओं में नाम   ः-

हिंन्दी                    मिर्गी
मराठी                   फेम्फड़, अपस्मार
अंग्रेजी                  इपिलेप्सी
मल्यालम             अपस्मारम्


अपस्मार के वेग आने का समय ः-
               प्रकुपित वातादि दोष 15-15 दिंनो पर, 10-10 दिंनो पर या 1-1 महीनों पर अपस्मार के वेगों को उत्पन्न करते है और कभी-कभी इन समयो के पूर्व मे भी दोष वेगों को उत्पन्न कर देते है।


भोजन तथा परहेज ः-
           गेहूं, लाल चावल, परवल, गोदुध, मूंग, बथुआ, पुराना पेठा, मीठा अनार, आंवला, दाख, नारयल का पानी, तेल, फलासे, पुराना घी और रेगिस्तानी पक्षियों के मास का शोरबा आदि अपस्मार के रोगीयों के लीये कारगर साबीत होता है। इन रोगीयों को हमेशा प्रोटीन और विटामिन युक्त भोजन कराना चाहियए। कम नमक वाला शाकाहारी भोजन और दूध इन रोगीयों के बहुत ही अछा भोजन है। रोगी हमेशा प्रसन्न चित्त रहना चाहिए और पूरी नींद लेनी चाहिए।
             रोगीयों ने हमेशा याद रखना चाहिए की देर से हजम होने वाले अन्न पदार्थ, बेकरी और पैकिंग प्रोडक्ट का सेवन हेतू इस्तमाल करना बंद कर दे, पत्ते का साग, खीरा, जून के महिने में पैदा होने वाले फल, देर रात तक जागना, चाय-काॅफी, अधिक श्रम, मासाहारी भोजन इन रोगीयों के लीए हानीकारक होता है। अपस्मार रोगीयों को भय, शोक और चिन्ता से परहेज करना चाहिए। कभी भी पीडित व्यक्ति को अकेले नही रहना चाहिए क्योंकी दौरा अचानक पडता है।

 उपचार पद्धति ः-
                 आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार अपस्मार रोगी को जल के पास जाने पर भीषण वेग होता है। इसलिए रोगी को सावधान कर देना चाहिए कि वह अकेला नदी, तालाब अथवा स्विमींग पूल मे स्नान करने न जाए। लोहभस्म अथवा स्वर्न मक्षिक अथवा मनःशिला अथवा इनके योगोका प्रयोग उपचार हेतू स्मरणीय है। वेग के समय रोगी को किसी भी तीक्ष्ण द्रव्य की नस्य देने से या उसके नाक पर प्याज या उल्टा जूता रख देने से होश आजाता है। वातिक अपस्मार की बस्ति द्वारा, पीत्त की विरेचन औषध द्वारा तथा कफज की वमन औषध द्वारा चिकित्सा करनी चाहिये। ( भौषज्य रत्नावलि )

विभिन्न औषधियों से उपचार ः-

  • प्याज ः-  प्याज लेकर मिक्सी में पीस ले और एक कप रस नीकाल ले और उसमे जरासा पानी मिलाकर सुबह खाली पेट पीेने से अपस्मार के दौरे पड़ने बंद हो जाते है।
  • मनसिल   ः- मनसिल, रसौंत, कबूतर की विष्ठा इन्हें एकत्र मिश्रित कर अंजन करने से अपस्मार तथा उन्माद रोग नष्ट होते है।
  • सरसों ः- श्वेत सरसों तथा सहजन के बिजों को बकरी के मूत्र में पीसकर शरीर पर लेप करने से अपस्मार नष्ट हो जाता है।
  • वचा चुर्ण ः- रोज जो रोगी दुध भात का पथ्य रखता हुआ वचाचुर्ण को मधु के साथ सेवन करता रहता है, वह पुराने महाघोर अपस्मार से मुक्त हो जाता है। ( भौषज्य रत्नावलि )
  • स्वल्पपज्चगव्यं घृत ः- गाय के गोबर का रस 4 सेर, गौ का खट्टा दही 4 सेर, गौ का दूध 4 सेर, गोमूत्र 4 सेर, गो का घी 4 सेर, पकाने के लिए जल 6 सेर । घृत में सबको इकठ्ठाडालकर पकाकर सेवन करने से उन्माद और अपस्मार आदि रोग नष्ट होते है। मात्रा - चौथाई तोला।
  • भिलावा ः- आधा चम्मच तिल के तेल मे दो बूंद भिलावे का तेल मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से अपस्मार या मिर्गी का रोग दूर होता है।


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