गुड़मार

गुड़मार







परिचय ः-
                      प्रकृति ने हमे बहोत सारी अलौकिक दवाइयों से संपंन्न वनस्पतियों का भंड़ार उपलब्द कराया है, उन्हीं में से एक है गुड़मार बुटी संस्कृत में इसे मधुनाशिनी भी कहते हैं। आयुर्वेद में इसके पतों और जड़ को औषध कर्म और दवाइयों के प्रयोग में लीया जाता है। यह बहुवर्षीय बहुशाखीय चक्रारोही लता है जो वृक्षों पर बायीं तरफ से चढ़ती है। इसकी पत्तियाँ 2 से 8 से.मी. लम्बी तथा 2 से 5 से.मी. चौड़ी, अण्डाकार, भालाकार, पत्राग, नुकीले आधार की और गोलाकार, मृदुरोमश होती है। पुष्प पीले रंग के होते हैं एवं कलियाँ प्राय: जोड़े में आगे की ओर संकुचित होकर चोंच जैसी हो जाती है। इसमें पुष्प अगस्त-सितम्बर व फल दिसम्बर जनवरी में आते हैं। यह डायबिटीज, मलेरिया और सर्पदंश के इलाज मे कारगर साबीत होती है।
                     गुड़मार बुटी मधुमेह के नियन्त्रण हेतु सर्वाधिक उपयोगी औषधीय पौधा है। आधुनिक समय में डायबिटीज एक ऐसी बीमारी हो गई है जो 50 वर्ष की आयु से अधिक आयु वर्ग के लोगो में 70 प्रतिशत व्यक्ति पीड़ित है। यह व्याधि और भी गम्भीर हो जाती है जब यह अनेक बीमारियों जैसे-ह्रदय रोग, गभीर चर्मरोगों, रक्त विकार, किडनी फेलियर, गैंगरीन आदि का कारण बन जाती है। आधुनिक  ( ऐलोपेथिक ) चिकित्सा पद्धति में इसके नियंत्रण हेतु अनेक दवाईयाँ व उपचार (इन्सुलिन व इंजेक्शन) प्रचलन में है, परन्तु इनका प्रभाव उन दवाओं का सेवन करने तक ही सीमीत होता है जबकि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में गुडमार द्वारा उपचार स्थायी एवं सस्ता है। इस प्रकार मधुमेह नियन्त्रण हेतु आज भी गुडमार इतनी ही कारगर है जितनी सदियों पूर्व से थी।

 भौगोलिक विवरण :-
                     गुडमार उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र के जंगलों में पायी जाती है। गुड़मार भारतवर्ष के विभिन्न भागों में प्राकृतिक रूप से काष्ठयुक्त रोयेंदारलता के रूप में पाये जाने वाली वनस्पति है।

औषधीय उपयोग :-
                      पत्तियों का चूर्ण मधुमेह (डायबिटीज) में उपयोगी है, इससे यकृत की क्रिया में सुधार हेाता है। यह अक्षिविकार, कास, कुष्ठ, कृमि, व्रण एवं विष को नष्ट करने वाला है। सर्पदंश में जड़ के रस का सेवन करते है। इसके पत्तों में जिम्नेनिक एसिड मुख्य घटक होता है। इसके अलावा अन्थ्राक्विनोन कम्पाउण्ड होता है। भस्म में फेरिक आक्साइड व मैंगनीज आदि तत्व भी पाये जाते हैं। गुडमार के सेवन से रक्त शर्करा की मात्रा कम हो जाते हैं। गुडमार के सेवन से रक्त में शर्करा का स्तर बढना स्वत: बन्द हो जाता है।

गुड़मार के फायदे और उपयोग :-

  • मधुमेह ः- गुड़मार का उपयोग प्राचीन काल से मधुमेह के रोगियों के लिए किया जाता रहा है। मधुमेह की चिकित्सा में दी जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों में गुड़मार प्रमुख घटक द्रव्य के रूप में प्रयोग में लिया जाता है। त्रिफला चुर्ण और गुड़मार की पत्तियों का चुर्ण समभाग मिलाकर गुनगुने जल के साथ गर दो चम्मच लेकर रोज सुबह-शाम खाना खाने के बाद ( आधे घंटे के बाद ) सेवन कर लिया जाय तो रक्त में शर्करा का स्तर बढना स्वत: बन्द हो जाता है।  
  • कफ और खांसी :- खांसी और छाती में जमें कफ को बाहर निकालने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। गुड़मार की जड़ की छाल का चूर्ण आधा चम्मच और शहद दो चम्मच के साथ दिन में 3 बार देने से कफ से राहत मिल जाती है।
  • साप का जहर :- गुड़मार की जड़ को पीस कर इसके चार गुना जल में मिलाले इसमें से एक चोथाई जल शेष रहने तक धिमि आच पर पका ले इसमें से 40 एम. एल. काढा हर एक घण्टे के अंतराल से पीलाते रहने से वमन द्वारा आमाशय साफ हो जाता है तथा यह रक्त में अवशोषित और शरीर में व्याप्त विष का नाश करता है। इसके साथ ही दंश स्थान पर गुड़मार की जड़ को पीस कर इसकी पुटीष बांध देते है।
  • अफीम का ज़हर :- गुड़मार की जड़ को जल में पीस कर छान कर इस जल को पिला देने से आमाशय में स्थित अफीम का ज़हर वमन द्वारा बाहर निकल जाता है।
  • गुड़मार चूर्ण के फायदे :- इसकी पत्तियों का चूर्ण 1/2 चम्मच प्रातः सांय शहद या गाय के दूध के साथ दिया जाता । इससे यकृत की क्रिया में सुधार होता है जिससे उसकी मधुजन संचय की शक्ति बढ़ती है। अग्न्याशय और अधिवृक्क ग्रन्थियों के स्राव में भी यह सहायता करता है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से यकृत में ग्लूकोज़ का ग्लायकोज़न के रूप में संचय होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।


गुड़मार के नुकसान :-
 गुड़मार का अधिक मात्रा में सेवन आपके शरीर में रक्‍त शर्करा की कमी का कारण बन सकता है।
 इस दवा को आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।

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