त्रिफला चूर्ण



 गलत रहन-सहन, हवामान मे बदलाव और कमजोरी के कारण शरीर बीमारीयों  का घर बन जाता है लेकीन यदी हम थोडी सतर्कता रखे और आयुर्वेद को अपनाएं तो हम अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते है। त्रिफला आयुर्वेद का प्रसिध्द द्रव्य है। आयुर्वेद मे हरड़, बहेड़ा और आंवला तीनो को मीलाकर तयार होने वाली रसायन औषधी को त्रिफला चू्र्ण कहते है। इस चूर्ण को बनाने की विधी बहोत ही सरल है। 1 भाग हरड, 2 भाग बेहडा और 3 भाग आंवला इस अनुपात में इन सभी को मिलाकर, चूर्ण बनाकर शीशी मे भर कर रख ले। आयुर्वेदा नुसार इसे आधा से एक चम्मच के अनुपात मे हलके गरम जल के साथ सुभह-शाम लीया करते है।
              अगर हम संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करे तो हमे ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावनाएं नहीं होती। इसके लगातार सेवन से 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करने मे यह मदद करता है और अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संसथा को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाये रखता है। यदि गर्म जल के साथ सोते समय एक चम्मच ले लिया जाए तो क़ब्ज़ नही रहता। त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने, लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने और शरीर में अती वसा की मात्रा को हटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

विभिन्न रोगों का त्रिफला से उपचार

मोतियाबिंद - त्रिफला का काढ़ा तयार करके मोटे कपडे से छान कर आंखों को धोने से शुरवाती मोतियाबिंद दूर होता है। त्रिफला चूर्ण और यष्टीमूल चूर्ण समभाग मीलाकर 3 से 6 ग्राम शहद या घी के साथ दीन मे दो बार चाटने से मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।

भोजन की इच्छा न करना ( अरूचि ) - अरूचि को दूर करने के लिए त्रिफला, दाड़िम तथा रजादन मिलाकर सेवन करते है। त्रिफला और त्रिकुटा समभाग मीलाकर 1 ग्राम सुबह-शाम शहद मे मिलाकर लेने से अरूचि मीट जाती है।

घाव या जख्म - त्रिफला के पानी से घाव की सफई करने से घाव भरने लगते है। त्रिफला चू्र्ण मे देसी गाय के गोबर का रस मिलाकर बारीक पीस कर बेर के बराबर गोलीया बनाकर रोजाना सेवन करने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है।

कब्ज - 1 या आधा चम्मच त्रिफला के चूर्ण को 1 कप गर्म पानी के साथ सुूबह-शाम सेवन करने से कब्ज दूर होता है। त्रिफला, सनाय, काली हरड़, गुलाब के फूल, बदाम, बीज रहीत मनुका, कालादाना (कृष्णबीज), वनफ्शा (नीलपुष्प) सबको समभाग मिलाकर रख ले इस मे से आधा चम्मच गोदुध के साथ सेवन करने से कब्ज की शिकायत समाप्त हो जाती है।

बवासीर (अर्श ) - त्रिफला का चूर्ण आधा चम्मच गर्म गोदुध के साथ सेवन करने से कब्ज बवासीर की जलन और दाह मे आराम मिलता है।

दस्त - त्रिफला का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा मे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाता है।

कृमि ( पेट के कीडे ) - त्रिफला, निम पत्र और हल्दी समभाग मीलाकर सेवन करने से पे़ट के कीडे मर जाते है।

जुकाम -  त्रिफला का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा मे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खासी, जुखाम, कफ, गलेमे सुजन की समस्या से नीजात मील जाती है।


बालों का झड़ना - 6 ग्राम त्रिफला के चूर्ण मे 4 रती लोह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बंद हो जाता है।

रक्त पित्त - समभाग त्रिफला और अमलतास के 20 मिलीलीटर काढ़े में शहद और मिश्री को मिलाकर पीने से रक्त पीत्त, जलन तथा दर्द दूर होता है।

पथरी - त्रिफला 14 ग्राम और पाषाण भेद, गोखरू व साठी की जड़ 5-5 ग्राम तथा अमलतास का गूदा 10 ग्राम इन सबको 500 मिलीलीटर पानी डालकर उबाले जब जब 100 मिलीलीटर पानी शेष रेहे तब इसे छान कर सुबह-शाम पीया करे, इससे पथरी टूट कर नीकल जाती है।




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