दमा




दमा को श्वस और अस्थमा के नाम से जाना जाता हैं। दमे का इतिहास मानव के इतिहास जीतना ही पुराना हैं। दमा अत्यंन्त जटिल व हटिला रोग हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख लीखा मीलता हैं। तब से लेकर आज तक हम इससे लडते आ रहै हैं। इसका मुख्य कारण वातावरण मे बढता प्रदूषण हैं। हमारे देश मे दमे के रोगीयो की संख्या 4 करोड से भी अधिक हैं। जादातर रोगीयोको अस्थमा के बारेमे सीमीत जानकारी होती है। अगर उन्हें अपने रोग के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिले तो वहां उचित चिकित्सा भी ले सकेंगे।
             फेफड़ों की श्वास नलिकाओं के अतीसंवेदनशील हो जाने के कारण समय-समय पर विभिन्न कारणों से श्वास नलिकाओं में अचानक सिकुड़न आ जाती है। साथ ही इन नलिकाओं में सूजन भी आ जाती है। तथा इनके अंदर उत्पन्न होने वाले स्त्रव की मात्रा भी बढ़ जाती है। जिससे श्वस के आने-जाने में दिक्कत होने लगती है। इसे ही दमे का दौरा कहते है। नलिका में आए उपरोक्त परिवर्तन जो रोगी की तकलीफों के लिए जिम्मेदार है,दवाइयों के उपयोग से व कभी-कभी बगैर दवाइयों के अपने आप भी कुछ समय में ठीक हो जाते हैं व नलिकएँ पुनः अपनी सामान्य अवस्था में आजाती है और रोगी को श्वस की तकलीफों मे राहत मील जती है।  नलिकएँ तब तक सामान्य अवस्था मे रहती है जब तक रोगी को पुनः किन्हिं कारणों से दमेका अगला दौरा नहीं पड़ता। एक बार दमेका दोरा आ जाने के बाद दमे का अगला दौरा आने तक रोगी बिल्कुल ठीक रहता है। दो अटैक के बीच का समय कुछ पलो से लेकर हफ्तों,महीनों या वर्षों तक ठीक रह सकता है। 
              आज के समय मे अस्थमा तेजी से स्त्रि-पुरुष और बच्चो को अपना शिकार बना रहा है। यह रोग धुंवा,धूल,दूषित गैस आदि विकारी पदार्थ, लोगों के फेफड़ों मे पोहोचकर फेफड़ों को हानि पहुंचाते है। इसके अलावा जलन पैदा करने वाले पदार्थैं का सेवन करने से, देर से हजम होने वाले पदार्थैं का सेवन करने से,रसवाहिनी शिरओं को रोकने वाले और दस्त रोकने वाले पदार्थैं का सेवन करने से दमा रोग होता है।
                आयुर्वेद के अनुसार अस्थमा रोग के निमलीखीत 5 प्रकार होते है। 

क्षुद्रश्वास - अधिक परीश्रम तथा रूखे पदार्थें का सेवन करने के कारण जब पेट मे जमा वयु उपर की ओर उठती है तो क्षुद्रश्वास उत्पन्न होती है। इससे क्षुद्रश्वास मे वायु कुपीत हो जाती है।यह रोग कभी-कभी अपने आप ही ठीक हो जाता है।

तमस श्वांस ( पीनस ) - इस दमा रोग में वायु गले को जकड़ लेती है और गले में जमा कफ ऊपर की ओर उठकर श्वांस नली में विपरीत दिशा में चढ़ता है जिसे तमस (पीनस) रोग उत्पन्न होता है। पीनस होने पर गले में घड़घड़ाहट की आवाज के साथ सांस लेने व छोड़ने पर अधिक पीड़ा होती है। इस रोग में भय, भ्रम, खांसी, कष्ट के साथ कफ का निकलना, बोलने में कष्ट होना,जीमचलना,मुख का सुख जाना ,सिर दर्द, चेतना का कम होना आदी लक्षण इस रोग मे नजर आते है।

ऊध्र्वश्वास - ऊध्र्वश्वास (सांस को जोर से ऊपर की ओर खिंचाव) :
सास लेते समय ऊपर की ओर जोर से सांस खींचना नीचे को लौटते समय कठिनाई का होना, सांसनली में कफ का भर जाना, बार-बार बलगम निकलना, ऊपर की ओर दृष्टि का रहना, घबराहट महसूस होना, हमेशा इधर-उधर देखते रहना तथा नीचे की ओर सांस रुकने के साथ बेहोशी उत्पन्न होना आदि लक्षण होते हैं।

महाश्वास - सांस ऊपर की ओर अटका महसूस होना, खांसने में अधिक कष्ट होना, उच्च श्वांस, स्मरणशक्ति का कम होना, मुंह व आंखों का खुला रहना, मल-मूत्र की रुकावट, बोलने में कठिनाई तथा सांस लेने व छोड़ते समय गले से घड़घड़ाहट की आवाज आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। जोर-जोर से सांस लेना, आंखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना ये महाश्वास के लक्षण हैं।

छिन्न श्वास - इस रोग में रोगी ठीक प्रकार से श्वांस नहीं ले पाता, सांस रुक-रुककर चलती है, पेट फूला रहता है, पेडू में जलन होती है, पसीना अधिक मात्रा में आता है, आंखों में पानी रहता है तथा घूमना व श्वांस लेने में कष्ट होता है। इस रोग में मुंह व आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा सूख जाता है, मन उत्तेजित रहता है और बोलने में परेशानी होती है। रोगी की मूत्राशय में बहुत जलन होती है और रोगी हांफता हुआ बड़बड़ाता रहता है।


आयुर्वेद मे 100 से भी जादा औषधियों से  अस्थमा का उपचार कीया जाता है। उस मेसे कुछ औषधियों के बारेमे हम यहा जानेगें।



सोंठ - सोंठ,जीरा, सेंधानमक, हींग भुनी हुई और तुलसी पत्र समभाग लेकर कूट-पीस कर चुर्ण बना ले। 2 चम्मच चुर्ण 300 मिलीलीटर पानीमे उबाल कर पीनेसे अस्तमा रोग ठीक होता है। सोंठ,नागर मेथा और  हरड समभाग लेकर उसमे गुड मीलाकर आधा ग्राम की गोलीया बनाले यह गोली मुहमे रखकर चुसने से दमे के दौरे व खासी मे आराम मिलता है।

तेजपत्ता - पीपल और तेजपत्ता 2-2 ग्राम की मात्रा में अदरक की चाशनी में मीलाकर चाटने से श्वासनली का रोग ठीक होता है। तेज पत्ते के काढे मे गो दुध मीलाकर रोज सुबह-शाम पीमे से अस्तमा रोग शांत होता है।

नींबू - यह ह्रदय रोग,ब्लडप्रेशर तथा पाचन संस्था के लिये लाभकारी होता है। दमेे का दोरा पडने पर गर्म पानी मे नींबू निचोडकर पीने से लाभ मीलता है। दो चम्मच  नींबू के रस मे एक चम्मच अदरक का रस हलके गर्म पानी के साथ पीने से अस्थमा रोग शांत होता है।

हल्दी - हल्दी को भूनकर शीशी में बन्द करके रखें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत लाभ मिलता है। हल्दी, मुनक्का, रास्ना, कालीमिर्च, छोटी पीपल, कचूर और पुराना गुड़ इन सभी को एक साथ पीसकर सरसों के तेल में मिला लें और यह एक ग्राम की मात्रा का सेवन करने से तेज श्वास रोग व दमा ठीक होता है। हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग में आराम मिलता है।  हल्दी,किशमिश,कालीमिर्च, पीपल, रास्ना और कचूर 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमे की शिकायत खत्म होती हैं।

प्याज - प्याज का रस, अदरक का रस, तुलसी के पत्तों का रस व शहद 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम खाने से अस्थमा रोग नष्ट हो जाता है। सफेद प्याज का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से दमा ठीक होता है।प्याज का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से दमा रोग में आराम मिलता है।

 लहसुन - 10 ग्राम लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में सांस लेने में होने वाली परेशानी दूर हो जाती है। लगभग 2 बूंद लहसुन का रस और 10 बूंदे कुठार का रस को शुद्ध शहद के साथ दिन में 4 बार सेवन करने से दमा व श्वास की बीमारी ठीक होती है। लहसुन को आग में भूनकर चूर्ण बना लें और इसमें सोमलता, कूट, बहेड़ा, मुलेहठी व अर्जुन की छाल का चूर्ण बनाकर मिला लें। यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से दमा और श्वास की बीमारी ठीक हो जाती है।

भोजन तथा परहेज - दवाई के अलवा भोजन तथा परहेज पर भी ध्यान देना जरूरी है। दमा से पीड़ित रोगी को एक ही बार में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए। रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम बकरी का दूध पीना चाहिए। खुली धूप में  रोगी को कभी नहीं बैठना चाहिए। रोगी को मन शान्त रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की चिन्ता, तनाव, क्रोध और उत्तेजना से हमेशा अपना बचना करना चाहिए। रोगी को ठंड़ी या गर्म चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को हल्का तथा पाचक भोजन लेना चाहिए। गले तथा छाती को ठंड़ से बचाना चाहिए। पेट में कब्ज हो जाए तो उसे दूर करने के लिए फलों का रस या त्रिकुटा चुर्ण सेवन करना चाहिए। जादा दस्त लाने वाले चूर्ण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि दमा के रोगी की सहनशक्ति बहुत कम होती है।               
                             भोजन में गेहूं की रोटी, तोरई, करेला, परवल, मेथी, बथुआ आदि चीजे भोजन मे लेनी चाहिए। पुराने सांठी चावल, लाल शालि चावल, जौ, गेहूं, पुराना घी, शहद, बैंगन, मूली, लहसुन, बथुआ, चौलाई, दाख, छुहारे, छोटी इलायची, गोमूत्र, मूंग व मसूर की दाल, नींबू, करेला, बकरी का दूध, अनार, आंवला तथा मिश्री आदि का सेवन करना दमा रोग में बहोत ही लाभकारी होता है। 
                              इस रोग में ठंडी चीजे, दूध, दही, केला, संतरा, सेब, नाशपात्ती, खट्टी चीजे आदि कभी भी नहीं खानी चाहिए। शराब तथा बीड़ी-सिगरेट पीना भी हानिकारक होता है। दमा के रोगी को रूखा, भारी तथा शीतल पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सरसों, भेड़ का घी, मछली, दही, खटाई, रात को जागना, लालमिर्च, अधिक परिश्रम, शोक, क्रोध, गरिष्ठ भोजन और दही आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।



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